तुम बोलते गए मैं सुनती रही....
तुम्हारा हर सितम सहती रही.....
चुप रही...खामोश रही.......
न कोई शिकवा किया.....न कोई शिकायत ही की.......
क्या सिला मिला फिर भी मुझे ....
तुम छोड़ गए .......
मैं खरी रही ......
तुम चले गए.....
मैं देखती रही.......
न कोई शिकवा किया...न कोई शिकायत ही की.....
क्या सिला मिला फिर भी मुझे.........
तनहा हूँ मैं....अकेली हूँ मैं....
एक अनसुलझी पहेली हूँ मैं.........
दूर हो तुम................खुश हो तुम.............
शायद मैं तुम्हे याद भी नहीं..........
तुम्हारे आस पास भी नही ........
चाँद और सितारों के बीच तुम्हे धुन्दती हूँ मैं.......
फिर एहसास होता है.......नहीई हो तुम.....
पर जहाँ हो तुम... खुश हो तुम.....और उदास हूँ मैं...
जवाब हो तुम और सवाल हूँ मैं....
चाँद हो तुम .....आसमान हूँ मैं.......
मेरे दोनों जहां हो तुम.......
और तुम्हारी कोई भी तो नही हूँ मैं ..........
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