मेरी ख़ामोशी को तुम सुन भी ना सके .....
मेरी आँखों को तुम पढ़ भी ना सके ......
मेरे आंसूं छलकते गए......
मैं रोत्ई रही ....
और तुम मेरे उन अश्कों को पोंछ भी न सके ......
मेरी जुबान चुप रही .......
मैं हर अपमान का घूंट पीती गयी ........
और तुम मुझे समझ भी न सके ......
दुःख से घिरी रही ......
दर्द में डूबी रही ....
अँधेरे कुँए में गिरती गयी .....
और तुम मुझे गिरने से रोक भी ना सके ......
तुम मेरे हो भी न सके .....
दूर मुझसे दूर चले गए......
और मैं तुम्हे जाने से रोक भी न सकी..
-- ........................................सोनल जमुआर
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