तकदीर की लकीरों से चुराया था तुमको
अपना हम कदम बनाया था तुमको
दो कदम साथ चले तुम लेकिन ...
हाथ मेरा छोड़ चले जाना था तुमको
एहसास वो तड़प तेरे जाने के बाद आज भी है बाकी ...
ज़लज़ला एक तूफ़ान सा उठा दिल में जो दिल ने भूल जाना चाह था तुमको
तकदीर की लकीरों से चुराया था तुमको
अपना हमकदम बनाया था तुमको
हसरत तुझसे मिलने की आज भी है बाकी
तेरे तस्सबुर का इंतज़ार आज भी है बाकी ..
साहिल मिला नहीं है अभी तक लहरों को
की तेरे आने की आस आज भी है बाकी ....
पर दीदार ये यार के इंतज़ार ने इतना तनहा कर सा दिया है हमको
पूछता है दिल अह्ज़े वफ़ा को तोड़ कर क्या मिला तुमको
तकदीर की लकीरों से चुराया था तुमको
अपना हमकदम बनाया था तुमको ....
awesome yaar.....
जवाब देंहटाएंतकदीर की लकीरों से चुराया था तुमको
जवाब देंहटाएंअपना हम कदम बनाया था तुमको
इन दोनों पंक्तियों ने दिल को छु लिया. बहुत सुन्दर. बधाई और स्वागत आधुनिक साहित्य -संसार में.
www.nareshnashaad.blogspot.com महफ़िल-ए-नाशाद
sundar abhivyakti
जवाब देंहटाएंbadhayi
"तकदीर की लकीरों से चुराया था तुमको
जवाब देंहटाएंअपना हम कदम बनाया था तुमको"
सहज शब्दों से मनोभावों को चित्रित करने का सार्थक प्रयास - ब्लॉग भी सुंदर लगा - शुभकामनाएं
chitta jagat me swagat hai aapkaa
जवाब देंहटाएंaap achha likti hain
likhte rahen shubhkaamnaaye
dr vikas tomar
Thanx to everyone
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