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अनकहे अधूरे ज़ज्बात प्यार का वो अनछुआ पहलु ...एक सौगात आपके नाम

गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

गर मेरे अधूरेपन को समझ सको तुम ...

हालत कुछ ऐसी  है कीैं बयान  हमसे कुछ हो ना पाएगी ...
मोहब्बत भी ऐसी है की तुमसे जुबान कुछ कह  ना पायेगी ...
गर अश्कों की बूंदों को गीन सको तुम ...
गर होठों की ख़ामोशी को पढ़ सको तुम......
गर मेरे अधूरेपन को स्मझ सको तुम .....
काश तुम..........
जींदगी तुम्हारे बीना भी गुज़रती है ....
गर मेरे अधूरेपन को समझ सको तुम ...
ख़्वाबों के टूटने का डर नही है ...
तुमसे दूर होने की भी ना है कोई फीक्र.
पर हाँ कीस्मत की लकीरों में नाम तुम्हारा हो ......
और हर पल हर लम्हा हो तुम्हारा ज़ीकर........
सैलाब  इ वफ़ा ..पैगाम-इ-मोहब्बत इनकी बातें है बहुत सारी..
कीतने    कीससे है कीतनी ही है कहानी ...
गर मेरे अधूरेपन को समझ सको तुम ..
उन जागती रातों की ,उन अधूरी बातों की, उन गुजरें लम्हों की .....हर एक पल की ,हर एक धड़कन की..
हर  तड़प की ,हर ज़ज्बात की ...हर छोटी छोटी वजहों की ..........बातें थी बतानी ........
गर मेरे अधूरेपन को स्मझ सकते  तुम ...
काश तुम ...........

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