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अनकहे अधूरे ज़ज्बात प्यार का वो अनछुआ पहलु ...एक सौगात आपके नाम

शनिवार, 19 जून 2010

शायद

अनकहे शब्दों में मन की बातों को  कैसे करती मैं बयां...
अनसुलझे ज़ज्बातों को कैसे देती मैं  जुबां ...
कोशिश की बहुत तुम्हे जताने की ...
रूठ गए थे तुम चाह थी तुम्हे मानाने की ....
कदम रुक कर फिर चले तुम्हारी ओर...
साज़ खामोश पड़े थे दूर दूर तक ना था कोई शोर ...
जब सामने तुम्हे देखा तो जुबान खुद बेजुबान हो चली ...
शब्द ही ना मिले मेरी भावनाए बन गयी खुद मेरे लिए पहेली
वो क्या था जो तुम्हे बताना चाहती थी मैं...
वो सारे दिल के अरमान जताना चाहती थी मैं ...
पर जाने क्यूँ  जुबां  ने साथ ना दिया ..
तुम रूठे रहे और मैंने  कुछ भी तो ना किया ...
काश तुमने मेरी आँखों में झांककर  एक बार तो देखा होता ...
शायद  अनकहे वो शब्द तुम्हे मेरे आंसुओं में छिपे हुए मिल जाते ...
शायद दबा हुआ वो दर्द तुम्हे मेरे लबों  पे सिले हुए से  दीख  जाते ...
काश तुम समझ पाते ..
शायद  उन खामोश लम्हों का हिसाब तुम्हे मैं दे सकती ...
शायद तुम मेरे पास वापस लौट आते ...
शायद तुम्हारी बाहों का आलिंगन आज मुझे घेरे हुए होता ...
 और आज मेरा दिल यूँ बार बार ना रोता
शायद मेरी कहानी यूँ अधूरी ना रह जाती ....
काश ...मैं तुमसे कुछ बोल पाती ......

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