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अनकहे अधूरे ज़ज्बात प्यार का वो अनछुआ पहलु ...एक सौगात आपके नाम

बुधवार, 24 मार्च 2010

कौन यह तूफान रोके ..

कौन ये तूफ़ान रोके ....
हिल उठे जिनसे समुन्दर ....
हिल उठे दिशी और अम्बर ...
हिल उठे जिस्स्से घर के ....
वन सघन कर सब्द हर हर .......

उस बवंडर के झकोरे
किस तरह इंसान रोके
कौन यह तूफान रोके ...
उठ गया लो पाँव मेरा
छुट गया लो ठाव मेरा
अलविदा ऐ साथ वालों
और मेरा पंथ डेरा ...

तुम न चाहों मैं न चाहूँ
कौन भाग्य विधान रोके
कौन ये तूफान रोके
.......................................श्री हरिवंश राय बच्चन जी की ये रचना है ....
मेरी प्रेरणा .....
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