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अनकहे अधूरे ज़ज्बात प्यार का वो अनछुआ पहलु ...एक सौगात आपके नाम

गुरुवार, 23 जून 2011

क्या कभी मेरी आँखों में पढ़ पाओगे ?


सागर भी तुम और साहिल भी तुम
 रस्ता भी तुम और मंजिल भी तुम
आंसूं भी तुम और ख़ुशी भी तुम 
दिल की  धड़कन भी तुम और दिल का दर्द भी तुम
तुम हाँ तुम..बस तुम... सिर्फ तुम ...
उमीदें तोड़ी भी तुमने
उमीदें जोड़ी भी तुमने
ये क्या जुस्तुजू है 
दिल को क्या आरजू है ......
इस हकीकत से तो तू भी रूबरू है ,,,,,,,,
 हर्ज़ और लफ्ज़ ही काफी नही होते  ....
अलफ़ाज़ भी हमेशा साकी नही होते .......
नज़रें हमेशा  आइना नही होती
ख़ामोशी हमेशा ना नही होती ..
तुम क्या कभी ये समझ पाओगे
तुम क्या कभी ये जान जाओगे ........
बिन बोले  अनकहे ज़ज्बात  ,क्या कभी  मेरी आँखों में पढ़ पाओगे ?

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