उलझनों से झूझते ज़ज्बात ....बेकाबू से हो चुके हालात
खुद को ढूँढती हुई मैं इन सब के बीच कहाँ आगयी हूँ और कहाँ ले जाएगी मुझे ये ज़िन्दगी
आगे सोचती हूँ पर निरुत्तर हूँ
ऐसे प्रशन जो खुद एक पहेली बन गए हैं मेरे लिए
ना जवाब है ना कोई दिशा है जिस ओरे मन चला जा रहा है उस ओर खुद पाँव मुड़ जाते हैं.
दिशाहीन लक्ष्य हिन् ये जीवन व्यर्थ है बिना किनारे ये कश्ती कब तक लहरों के सहारे यूँ ही चलेगी
बिना साहिल के ये तूफानों से कब तक लड़ेगी
निराशा ने घेरा डाला है सपने भी साथ छोड़ चले है जीवन की नयाँ डगमगा रही है
अब तो बस एक हसरत ही बची है फिर से अपनी उड़ान भरने की
फिर से अपने सपनो में डूबने की
फिर से ज़िन्दगी को समटने की
फिर से उन लहरों के भवर में बहने की
फिर से अपनी आकंछाओ के पर को फैलाने की
फिर से अपनी सोच को एक मजबूत इरादे से बाँधने की ..
फिर से अपने अस्तित्व की खोज में निकलने की
फिर से अपनी राह बनाने की
फिर से अपनी मंजिलें पाने की
फिर से ज़िन्दगी के हर पल को जीने की
फिर से मुझे ज़रुरत है तुम्हारी ....
फिर से उन रिमझिम रिमझिम बारिशों में तुम्हारे संग भींगने की
फिर से तुम्हारे कांधे पे अपने सिर को रखने की
फिर से तुम्हारे एहसास की फिर से तुम्हारे बाहों के घेरे में खुद को बाँधने की ..
फिर से तुम्हारी उँगलियों में अपने लटों को उलझाने की
फिर से उन प्यारे हंसी भरे पल को वापस लाने की
हाँ मुझे ज़रुरत है तुम्हारी .......
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