.


अनकहे अधूरे ज़ज्बात प्यार का वो अनछुआ पहलु ...एक सौगात आपके नाम

सोमवार, 19 अप्रैल 2010

वफ़ा जो की हमने ..

बिरहा की चिता
अश्कों का समुन्दर .....
आँखों के सामने आते  हुए  वो मंज़र ....
मिल गया हमें वो सब कुछ वफ़ा जो की हमने ....
खो दिया हमने वो सब कुछ वफ़ा जो की हमने ...

पनाह दी थी कभी उन्होंने अपने सेहर में हमें मेहमानों की तरह ....
मिलते थे कभी वो हमसे जान से प्यारों की तरह .....
आज वो ही देखो दूर हो चले चाँद सितारों की तरह ....
पाकर खो दिया उनको  वफ़ा  जो  की हमने .....
चाहकर छोर चले गए वो वफ़ा जो की हमने .........

मोहब्बत का जो साज़ गुनगुनाया हमने ...
वो गुनाह बन गया ....
हया से जो झुक गयी नज़रें...लब हिले जो उनसे कुछ कहेने के लिए ...
प्यारी लगती थी जिन्हें हर बात मेरी ...
वो आज पूछते है औकात मेरी ....
ऐसे तो ना थे वो पर ऐसे हो चले वफ़ा जो की हमने ...
झूठ फरेब का इलज़ाम लगा कर ...हमसे दामन छुड़ा चले वफ़ा जो की हमने ...

वार दिया जिनपे  ये जीवन ..
सौंप दिया जिनको ये तन मन ...
जिनकी हर छुवन का एहसास आज भी है बाकी ...
जिनकी उंगलियाँ उलझती थी लटों में हमारी ...
आगोश में जिनके हम रहते थे हर पल ....
खामोश सी धड़कन ....उनकी वो नज़र ....
आज नज़रें है फेर ली उन्होंने  ....अजनबी हम हो चुके ...वफ़ा जो की हमने ...
बेगाने वो बन गए अनजाने वो हो चले  .....वफ़ा जो की हमने ...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें