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अनकहे अधूरे ज़ज्बात प्यार का वो अनछुआ पहलु ...एक सौगात आपके नाम

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

तकदीर की लकीरों

तकदीर की लकीरों से चुराया था तुमको
अपना हम कदम बनाया था तुमको
दो कदम साथ चले तुम लेकिन ...
हाथ मेरा छोड़ चले जाना था तुमको

एहसास वो तड़प तेरे जाने के बाद आज भी है बाकी ...
ज़लज़ला एक तूफ़ान सा उठा दिल में जो दिल ने भूल जाना चाह था तुमको
तकदीर की लकीरों से चुराया था तुमको
अपना हमकदम बनाया था तुमको

हसरत तुझसे मिलने की आज भी है बाकी
तेरे तस्सबुर का इंतज़ार आज भी है बाकी ..
साहिल मिला नहीं है अभी तक लहरों  को
की तेरे आने की आस आज भी है बाकी ....
पर दीदार ये यार के इंतज़ार ने इतना तनहा कर सा दिया है हमको
पूछता है दिल अह्ज़े वफ़ा को तोड़ कर क्या मिला तुमको
 तकदीर की लकीरों से चुराया था तुमको
अपना हमकदम बनाया था तुमको ....

6 टिप्‍पणियां:

  1. तकदीर की लकीरों से चुराया था तुमको
    अपना हम कदम बनाया था तुमको

    इन दोनों पंक्तियों ने दिल को छु लिया. बहुत सुन्दर. बधाई और स्वागत आधुनिक साहित्य -संसार में.
    www.nareshnashaad.blogspot.com महफ़िल-ए-नाशाद

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  2. "तकदीर की लकीरों से चुराया था तुमको
    अपना हम कदम बनाया था तुमको"
    सहज शब्दों से मनोभावों को चित्रित करने का सार्थक प्रयास - ब्लॉग भी सुंदर लगा - शुभकामनाएं

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  3. chitta jagat me swagat hai aapkaa

    aap achha likti hain

    likhte rahen shubhkaamnaaye

    dr vikas tomar

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